पाचन तंत्र के अंग व ग्रंथियाँ
[ Organs and Glands of Digestive System ]
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हमारा पाचन तंत्र कुछ अंग व ग्रंथियों से मिलकर बना होता है जो निम्नानुसार है -
a) अंग (Organ) -
हमारे शरीर में मुख से मलद्वार तक भोजन को पचाने का कार्य अंग करते है -1. मुख ( Mouth ) -
आहारनाल मुख से प्रारंभ होकर मुख गुहा में खुलता है एक कटोरेनुमा (Boul Shaped) अंग है हमारे मुंह में ऊपर वाला भाग कठोर तथा नीचे वाला भाग कोमल होता है तथा एक जीभ पाई जाती है जो हमारे मुंह के आधार से जुड़ी रहती है जिसे फ्रैनुलम लिंगुअल (Frenulum lingual) या जिहवा फ्रैनुलम कहा जाता है हमारा मुंह दो फोटो से घिरा रहता है जो भोजन को पकड़ने में सहायक होते हैं हमारे मुख में ऊपर व नीचे दो जबड़े पाए जाते हैं जिनमें प्रत्येक में 16 - 16 दाँत पाए जाते हैं और यह दांत एक साँचे में स्थित होते हैं और इस साँचे को मसूड़ा ( Gum ) कहा जाता है हमारे जीवन में द्विबारदंती दाँत ( Diphyodont ) की प्रक्रिया पाई जाती है इस प्रक्रिया में हमारे जीवन काल में दो प्रकार के दाँत - अस्थाई ( दूध के दाँत ) तथा स्थाई दाँत पाए जाते हैं |जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे मुख में चार प्रकार के दाँत पाए जाते हैं वह कौन-कौन से हैं चलिए यह जानते हैं -
अ) कृंतक (Incisors) - हमारे मुख में सबसे आगे पाए जाने वाले दाँत जो भोजन को काटने का कार्य करते हैं उन्हें कृतंक कहा जाता है | यह हमारे मुख में 6 माह की उम्र में ही निकलते हैं | यह प्रत्येक जबड़े में 4 - 4 होते हैं |
ब) रदनक (Canines) - यह दांत भोजन को चीरने फाड़ने का कार्य करते हैं जो कि हमारे मुख में से 20 माह की उम्र में निकलते हैं | यह प्रत्येक जबड़े में 2 - 2 होते हैं |
स) अग्र चवर्णक (Premolars) - यह दाँत भोजन को चबाने के काम आते हैं | यह हमारे मुख्य में 10 से 11 वर्ष की उम्र में पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं जो प्रत्येक जबड़े में 4 - 4 पाए जाते हैं |
द) चवर्णक (Molars) - यह दाँत भी भोजन को चबाने के ही काम आते हैं लेकिन यह हमारे जबड़े में 6 - 6 पाए जाते हैं तथा यह 12 से 15 माह की उम्र में निकलते हैं |
2. ग्रसनी (Pharynx ) -
हमारा मुख जिहवा व तालू के पिछले भाग में एक छोटी सी कुप्पीनुमा आकृति से जुड़ा होता है जिसे ग्रसनी कहा जाता है | इस ग्रसनी से होकर भोजन आहार नलिका में तथा वायु स्वासनाल में जाती है |ग्रसनी का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना होता है कि भोजन स्वासनाल में तथा वायु भोजन नाल में प्रवेश ना कर सके | ग्रसनी के तीन भाग होते हैं जो निम्न प्रकार से है -अ) नासा ग्रसनी (Nasopharynx)
ब) मुख ग्रसनी (Oropharynx)
स) कंठ ग्रसनी (Laryngopharynx) या अधो ग्रसनी (Hypopharynx)
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3. ग्रास नली (Oesophagus) -
- यह एक लंबी नली होती है जो करीब 25 सेंटीमीटर की होती है | यह ग्रसनी के निचले भाग से शुरू होकर तथा वक्षस्थल से होती हुई मध्यपट से होती हुई उदर गुहा में प्रवेश करती है |
- इसका मुख्य कार्य भोजन को क्रमाकुंचन गति (peristalsis) से आमाशय में पहुंचाना होता है |
- ग्रास नली के शीर्ष पर एक पल्ला या ढक्कन पाया जाता है जिसे घाटी ढक्कन या एपिग्लोटिस (एपिग्लॉटिस) कहते हैं जो कि भोजन निगलने के दौरान बंद हो जाता है तथा भोजन को श्वास नली में जाने से रोकता है |
4. आमाशय (Stomach) -
आहार नाल का ग्रासनली से आगे का भाग आमाशय कहलाता है जो J आकार की संरचना का होता है | यह एक लचीला भाग होता है जो 1से 3 लीटर तक भोजन को इकट्ठा कर सकता है | अमाशय को तीन भागों में बांटा जा सकता है जो निम्नलिखित है -अ) कार्डियक या जठरागम भाग - यह आमाशय का सबसे बड़ा भाग है जहाँ से ग्रसिका आमाशय में प्रवेश करती है |
ब) फंडिस भाग - यह आमाशय का मध्य का भाग है |
स) जठर निर्गमी भाग - यह आमाशय का सबसे छोटा भाग है जहाँ से आमाशय छोटी आंत से जुड़ता है |
👉आमाशय में दो पेशियाँ भी पाई जाती है जो निम्नलिखित है -
a) ग्रासनलिका अवरोधनी (Cardiac or lower esophageal sphincter ) - यह पेशी ग्रसिका व आमाशय को अलग - अलग करती है तथा यह अम्लीय भोजन को आमाशय में ऊपर की और स्थित ग्रसनी में जाने से रोकती है |
b) जठर निर्गमी अवरोधनी (Pyloric sphincter) - यह पेशी आमाशय व छोटी आँत को अलग - अलग करती है तथा आमाशय से भोजन को छोटीआँत में निकालने के लिए सहायक होती है |
- आमाशय की बाहरी दीवारे पर ग्रीवा कोशिका पाई जाती है | आमाशय कुछ acid व एंजाइम भी बनाता है जिसे आप निम् रूप से आसानी से समझ सकते है -
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👉 HCL के कार्य -
1. जीवाणु या कीटाणु को नष्ट करना |2. एंजाइम 2.5 pH पर ही काम करते है |
👉 म्यूकस ( श्लेष्मा ) -
हमारे आमाशय की बाहरी सतह पर ग्रीवा कोशिका पाई जाती है जहाँ से म्यूकस या श्लेष्मा निकलता है यह म्यूकस आमाशय की झिल्ली के पास जमा हो जाता है इसके कारण HCL हमारी आमाशय की झिल्ली को नुकसान नहीं पहुँचा सकता है |Most important point -
👉 शराब या नशीले पदार्थो का सेवन करने से म्यूकस गलने लगता है जिससे HCL आमाशय की झिल्ली के सम्पर्क में आने लगता है तो इससे पेट का कैंसर (अल्सर ) हो सकता है |
5. छोटी आँत (Small intestine) -
छोटी आँत पाचन तंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग होता है जो अमाशय की जठरनिर्गमी (Pyloric) पेशी से शुरू होकर बड़ी आँत पर पूर्ण होती है | इसकी लंबाई लगभग 7 मीटर होती है तथा छोटी आँत के द्वारा ही भोजन का सर्वाधिक पाचन तथा अवशोषण होता है | इसे तीन भागों में विभक्त किया जाता है जो निम्नलिखित हैं -1) ग्रहनी (Duodenum) -
यह आमाशय के अंतिम भाग में जठर निर्गमी अवरोधनी पेशी के बाद वाला भाग होती है जो छोटी आँत का सबसे छोटा भाग होता है | यह भोजन के रासायनिक पाचन में भूमिका निभाती है |2) अग्रक्षुदांत्र (Jejunum) -
यह छोटी आँत के मध्य का भाग होता है जो कि पचे हुए भोजन के रस का अवशोषण करता है | मुख्यत: अवशोषण का कार्य आंत्रकोशिका (Enterocyte) के द्वारा पूर्ण होता है|3) क्षुदांत्र (Ileum) -
यह छोटी आँत का सबसे बढ़ा व अंतिम का भाग होता है जो बड़ी आंतों में खुलता है यह भाग पोषक तत्वों का अवशोषण करता है जो ऊपर वाले भाग अग्रस उद्यान में अवशोषित नहीं हो पाते हैं |6. बड़ी आँत ( Large Intestine ) -
छोटी आँत का अंतिम भाग क्षुदांत्र के बाद से शुरू हुआ भाग बड़ी आँत कहलाता है | इसमें कुछ जीवाणु पाए जाते हैं जो छोटी आंत में बचे हुए अपचित भोजन को किण्वन क्रिया (Fermentation) के द्वारा भोजन को पचाने में मदद करते हैं बड़ी आँत का मुख्य कार्य जल व खनिज लवणों का अवशोषण तथा अपचित भोजन को मलद्वार तक पहुंचाना होता है | बड़ी आँत को तीन भागों में बांटा गया है जो निम्नलिखित है -1) अधान्त्र या अंधनाल (Cecum) -
छोटी आँत के अंतिम भाग क्षुदांत्र के बाद वाला भाग अधान्त्र या अंधनाल कहलाता है | यहाँ क्षुदांत्र से आने वाले अपचित भोजन का अवशोषण होता है तथा बचे हुए अपशिष्ट भोजन को वृहदांत्र तक पहुंचाने का कार्य करता है |2) कृमिरूप परिशेषिका(vermiform appendix) -
अंधान्त्र से थोड़ा नीचे अंदर की ओर 4 से 5 इंच लंबा नली के आकार का एक अंग निकला रहता है इसे कृमिरुप परिशेषिका कहते हैं | हमारे शरीर में यही एक ऐसा अंग है जो किसी कार्य में भाग नहीं लेता है |3) वृहदांत्र (Colon) -
बड़ी आँत का अंधान्त्र के आगे वाला भाग वृहदांत्र कहलाता है | यह यू के आकार की लगभग 1.3 मीटर लंबी नलिका होती है | वृहदांत्र चार भागों में विभक्त होती है जो निम्नलिखित है-अ) आरोही वृहदांत्र -
यह लगभग 15 सेंटीमीटर लंबी नलिका होती है |ब) अनुप्रस्थ वृहदांत्र -
यह लगभग 50 सेंटीमीटर लंबी नलिका होती है |स) अवरोही वृहदांत्र -
इसकी लंबाई करीब 25 सेंटीमीटर होती हैद) सिग्माकार वृहदांत्र -
यह लगभग 40 सेंटीमीटर लंबी नलिका होती है |7. मलाशय (Rectum) -
आहारनाल का अंतिम भाग मलाशय कहलाता है| यह करीब 20 सेंटीमीटर लंबा होता है | इसके अंतिम 3 सेंटीमीटर वाले भाग को गुदानाल (Anal canal) कहते हैं गुदानाल में अपशिष्ट पदार्थ इकट्ठा होते है जिसे मलद्वार के रास्ते से शरीर से बाहर निकाला जाता है | गुदानाल में दो संवरनी पाई जाती है -अ) बहि: संवरणी
ब) अंतः संवरणी
- पाचित आहार रस के अवशोषण के पश्चात शेष रहे अपशिष्ट पदार्थों के बाहर निकलने की प्रक्रिया को संवरणी पेशियाँ नियंत्रित करती है |
b) ग्रंथियाँ (Glands ) -
1) लार ग्रंथि (Salivary gland) -
हमारे मुख में तीन लार ग्रंथियां पाई जाती है जो आहार नाल का भाग नहीं होती है लेकिन उसके पास स्थित होती है चलिए उन्हें जान लेते हैं-(i) कर्णपूर्व ग्रन्थि (Parotid gland) - यह ग्रंथि हमारे गालो में पाई जाती है |
(ii) अधोजंभ या अवचिबुकीय लार ग्रंथि (Submandibular salivary gland) - यह ग्रंथि हमारे मुख में गले के ऊपर पाई जाती हैं |
(iii) अधोजिहवा ग्रंथि (Sublingual gland) - यह ग्रंथि जीभ के नीचे पाई जाती है |
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2) अग्न्याशय (Pancrease) -
यह मिश्रित ग्रंथि होती है जो हार्मोन व एंजाइम का निर्माण करती है | यह 6 से 8 इंच लम्बी तथा U आकार की होती है| यह दो हार्मोन व तीन एंजाइम निर्मित करती है जो निम्न चित्र द्वारा समझ सकते है -Image Source - Google | Image by - educalingo
- इंसुलिन व ग्लुकेगोन दोनों हार्मोन शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करते है |
- रक्त में शर्करा(शुगर) के स्तर में वृद्धि का पता अग्नाशय की कोशिकाओं द्वारा चलता है जिससे मधुमेह नामक रोग होता है |
- इसमें निर्मित एंजाइम अलग - अलग कार्यो को सम्पन्न करते है -
1. लाइपेज - वसा का पाचन |
2. एमाइलेज - कार्बोहाइड्रेड का पाचन |
3. ट्रिप्सिन - प्रोटीन का पाचन |
3) यकृत (Liver) -
- यह एक पाचक ग्रंथि है जो त्रिकोणाकार होती है | यह मानव शरीर की सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण अंग है |यकृत पालिकाएँ - यकृत छोटी - छोटी इकाइयो से मिलकर बना होता है जिन्हे यकृत पालिकाएँ कहते है |
पित्त का निर्माण - यकृत पालिकाएँ एक विशेष प्रकार का रस निकलती है जिसे पित्त रस कहते है | पित्त रस का संग्रह पित्ताशय में होता है |