Sunday, July 26, 2020

Cracking The Class 10 RBSE श्व्सन तंत्र के भाग (Organs of Respiratory system ) In Hindi Secret

श्व्सन तंत्र के भाग (Organs of Respiratory system )

Dear Students यदि आपने इससे पहले निम्न Topic नहीं पढ़े है तो नीचे दी गयी Link पर Click करके पढ़ सकते है -

     1.    Vitamin(विटामिन )

     2.   System of human body(मानव शरीर के तंत्र)

     3.   Digestive system organs and glands(पाचन तंत्र के अंग व ग्रंथियाँ)

श्व्सन तंत्र को तीन भागों में बाँटा गया है जो निम्न है -

a). ऊपरी श्व्सन तंत्र (Upper Respiratory system ) -

ऊपरी श्व्सन तंत्र में मुख्य रूप से नासिका, मुख, ग्रसनी, स्वर यंत्र कार्य करते हैं जो निम्नलिखित है -

1) नासिका (Nose) -

यह श्व्सन लेने के लिए प्राथमिक अंग होता है | यह एक जोड़ी नासाद्वार के रूप में होता है जो एक पतली हड्डी व झिल्ली के द्वारा दो भागों में बंटा होता है | हमारी नासिका गुहा में पाए जाने वाले महीन बाल, रक्त प्रवाह, श्लेष्मा सभी आपस में मिलकर वायु में धूल के कण दूर कर उसे शुद्ध करते हैं और वायु को हमारे फेफड़ों तक पहुंचाने का कार्य करते हैं |

2) मुख (Mouth) -

यह श्व्सन लेने में द्वितीयक अंग होता है | श्व्सन लेने के लिए नासिका मुख्य भूमिका निभाती है | आवश्यकता होने पर हम मुख का प्रयोग भी कर सकते हैं |

3) ग्रसनी (Pharynx) -

यह पेशीय चिमनीनुमा सरंचना होती है | ग्रसनी को तीन भागों में विभक्त किया गया है -
      a) नासा ग्रसनी (Nasopharynx)

      b) मुख ग्रसनी (Oropharynx)

      c) कंठ ग्रसनी (Laryngopharynx)

यदि हम नासिका से साँस लेते हैं तो सर्वप्रथम साँस नासिका गुहा से गुजरने के बाद नासाग्रसनी से होती हुई मुख ग्रसनी में प्रवेश करती है | यदि हम साँस मुख से ले तो यह सीधे मुखग्रसनी में आती है | मुखग्रसनी के बाद वायु कंठग्रसनी से होते हुए हमारे घाटी ढक्कन (एपिग्लॉटिस) की सहायता से स्वर यंत्र में प्रवेश करती है | - घाटी ढक्कन क्या होता है जानने के लिए इस पेज के अंतिम में मुख्य बिंदु को देख सकते हैं | वहां आपको कई और मुख्य बिंदु देखने को मिलेंगे |

4) स्वर यंत्र (Larynx) -

इसे लेरिंग्स भी कहा जाता है | यह कंठग्रसनी और श्वासनली को जोड़ने का कार्य करती है | इसकी मुख्य बात यह है कि यह नौ प्रकार की उपास्थि से मिलकर बनी होती है | जब हम भोजन को निकलते हैं तो घाटी ढक्कन बंद हो जाता है ताकि भोजन स्वर यंत्र में नहीं जा सके | स्वर यंत्र में एक विशेष सरंचना पाई जाती है जिसे स्वररज्जू (Vocal cord) कहा जाता है स्वररज्जू एक प्रकार की श्लेष्मा झिल्लीयाँ होती है जो हवा के बहाव से कंपन उत्पन्न कर हमारे गले से अलग अलग तरह की ध्वनियां उत्पन्न करती है जिसे हम स्वर कहते हैं |

Tips - Topic को आसानी से समझने के लिए इसका चित्र देखे |

चित्र देखने के लिए नीचे दी गयी LINK पर click करे -

System of human body(मानव शरीर के तंत्र)

b). निचला श्व्सन तंत्र (Lower Respiratory system ) -

निचले श्व्सन तंत्र में मुख्यतः स्वासनली , श्व्सनी , स्वसनिका तथा फेफड़े कार्य करते हैं -

1) स्वासनली (Trachea) -

यह लगभग 5 इंच लंबी नलिका होती है जो C आकार के छल्ले से बनी होती है | यह छल्ले स्वासनली चिपकने से रोकते हैं तथा इसे सदैव खुला रखते हैं | यह स्वर यंत्र को स्वसनी से मिलाती है तथा श्व्सन को गर्दन से वक्षस्थल तक पहुंचाती है उसके बाद स्वासनली दाहिनी तथा बायीं और दो भागों में विभाजित होकर फेफड़े में पहुंचती है इन शाखाओं को प्राथमिक स्वसनी (Primary bronchi ) कहते हैं | स्वासनली में उपस्थित उपकला (Epithelium) श्लेष्मा का निर्माण करती है जो स्वसन के साथ आने वाली वायु को शुद्ध करके फेफड़ों में पहुँचाती है |

2) स्वसनी (Bronchi) -

स्वासनली अंत में दाएं व बाएं ओर की स्वसनी में विभक्त होती है | प्राथमिक स्वसनी फेफड़ों में जाकर छोटी शाखाओं जिन्हें द्वितीयक स्वसनी कहते हैं में बंट जाती है | प्रत्येक खंड में द्वितीयक स्वसनी तृतीयक स्वसनी में विभक्त होती है प्रत्येक तृतीयक स्वसनी छोटी-छोटी स्वसनिका में विभक्त हो जाती है |
Parts of Lower Respiratory system
Image Source - Google | Image by - madison Kiger

3) स्वसनिका (Bronchiole) -

स्वसनी के बाद स्वसनिका फेफड़ों में फैली रहती है | प्रत्येक स्वसनिका आगे छोटी-छोटी स्वसनिका में विभक्त होती है | स्वसनी तथा स्वसनिका मिलकर एक वृक्ष की आकृति बनाते हैं जो बहुत सी शाखाओं में बंटी होती है | इन शाखाओं के अंतिम छोर पर कुपिकाएँ पाई जाती है गैसों का आदान प्रदान इन कुपिकाएँ के माध्यम से ही होता है |

4) फेफड़े (Lungs) -

फेफड़े लचीले कोमल तथा हल्के गुलाबी रंग के होते हैं | यह एक जोड़े के रूप में दाएं - बाएं भाग में ऊपर की तरफ पाए जाते हैं | फेफड़े स्वासनली, कूपिताएं, रक्त वाहिनी, कोशिकाओं आदि से निर्मित होते हैं | प्रत्येक फेफड़ा स्पंजी उत्तको से बना होता है जिसमें कई कोशिकाएं तथा कुपिकाएँ पाई जाती है | इनमे एक मुख्य बात यह होती है कि दोनों फेफड़ों में से दाहिना फेफड़ा बाएं फेफड़े से लंबाई में थोड़ा छोटा परंतु कुछ अधिक चौड़ा होता है व पुरुषों के फेफड़े स्त्रियों के फेफड़ों से भारी होते हैं |

C) माँसपेशिया (Muscles ) -

मांसपेशियों का मुख्य कार्य स्वाँस को लेने और छोड़ने का होता है | मुख्य रूप से स्वाँस के लिए डायफ्राम सहायक होता है | डायफ्राम कंकाल पेशी से बनी हुई एक पतली चादरनुमा एक सरंचना है जो वक्षस्थल की सतह पर पाई जाती है | डायफ्राम के संकुचन से वायु नासिका से होती हुई फेफड़ों के अंदर प्रवेश करती है तथा शिथिलन से वायु फेफड़ों के बाहर निकलती है | इसके आलावा इसमें विशेष प्रकार की मांसपेशियां (Inter coastal muscles) पाई जाती है जो मध्यपट या डायफ्राम के संकुचन व शिथिलन में मदद करती है |

👉students यदि आप श्व्सन के बारे में जानना चाहते है तो नीचे दी गयी Link पर click करे -

श्व्सन व श्व्सन के प्रकार

most Important Point -

घाटी ढक्कन -

यह एक पळेनुमा लोचदार उपास्थि (Elastic cartilage) सरंचना है जो स्वासनली व भोजन नली के बीच एक ढ़क्कन का कार्य करता है जो यह सुनिश्चित करता है की वायु स्वासनली में ही जाए तथा भोजन आहारनली में जाए अर्थात जब हम भोजन खाते है तो यह ढक्कन स्वासनली को ढक देता है ताकि भोजन स्वासनली में न जाए और यदि हम स्वास लेते है तो यह ढक्कन आहारनली को ढ़क देता है ताकि स्वास आहारनली में न जाए |

Dear Students यदि आपको ये नोट्स Helpful लग रहे है तो आप हमारी website पर Daily आये और कुछ नया सीखे | हम आपके लिए daily कुछ नया टॉपिक लेकर आते रहेंगे |