Monday, August 17, 2020

Chapter -1 स्वर्णिम भारत - प्रारंभ से 1206 ई ० तक (Golden India - From the beginning to 1206 AD) 2020 in Hindi

Chapter - 1 ( स्वर्णिम भारत - प्रारंभ से 1206 ई ० तक )
( Text Book Questions + Most Questions )

Text Book Questions

➡️ अतिलघुतरात्मक प्रश्न ( Very Short Questions )

Question 1.    राजस्थान के प्रमुख महाजनपद कौन - कौन से है ?
Answer :-        राजस्थान के प्रमुख महाजनपद मत्स्य और शूरसेन है |

Question 2.    बिन्दुसार के समय आए यूनानी राजदूत का क्या नाम था ?
Answer :-       बिन्दुसार के समय आए यूनानी राजदूत का नाम डाइमेकस था |

Question 3.    पुराणों में अशोक का क्या नाम मिलता है ?
Answer :-        पुराणों में अशोक का नाम अशोक वर्धन मिलता है |

Question 4.    अंतिम मौर्य सम्राट कौन था ?
Answer :-       अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ था |

Question 5.    ' समाहर्ता ' नामक अधिकारी का क्या कार्य था ?
Answer :-        ' समाहर्ता ' नामक अधिकारी का कार्य राजस्व एकत्रित करना , आय -व्यय का ब्योरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना था |

Question 6.    कौटिल्य की पुस्तक का नाम बताइए ?
Answer :-        कौटिल्य की पुस्तक का नाम अर्थशास्त्र है |

Question 7.   पतंजलि किस शासक के काल में हुए थे ?
Answer :-        पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के शासक काल में हुए थे |

Question 8.    सातवाहन वंश के सबसे प्रतापी राजा का नाम क्या था ?
Answer :-       सातवाहन वंश के सबसे प्रतापी राजा का नाम गौतमीपुत्र शातकर्णि था |

Question 9.    ' प्रयाग प्रशस्ति ' का लेखक कौन था ? वह किस शासक का दरबारी कवि था ?
Answer :-        ' प्रयाग प्रशस्ति ' का लेखक हरिषेण था | वह समुन्द्रगुप्त का दरबारी कवि था |

Question 10.    स्कन्दगुप्त ने मोर्यो द्वारा निर्मित किस झील का जीर्णोद्वार करवाया ?
Answer :-        स्कन्दगुप्त ने मोर्यो द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जीर्णोद्वार करवाया |

Question 11.    हर्षवर्धन की साहित्यिक रचनाओं के नाम बताइए ?
Answer :-        हर्षवर्धन ने संस्कृत में ' नागानंद ' , 'रत्नावली ' और 'प्रियदर्शिका ' नाम से तीन नाटकों की रचना की |

Question 12.   पालवंशी राजा किस धर्म के अनुयायी थे ?
Answer :-        पालवंशी राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे |

➡️अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न ( Very Short Questions )

Question 13.    16 महाजनपदो की जानकारी देने वाले ग्रंथो के नाम बताइए ?
Answer :-        बौद्ध ग्रंथ ' अंगुत्तरनिकाय ' और जैन ग्रंथ 'भगवती सूत्र ' में 16 महाजनपदो की जानकारी मिलती है |

Question 14.   16 महाजनपदों में दो प्रकार के राज्य थे , नाम बताइए ?
Answer :-        16 महाजनपदों में दो प्रकार के राज्य - राजतंत्र और गणतंत्र थे |

Question 15.    किन महाजनपदों में राजतंत्र राज्य और किन महाजनपदों में गणतंत्र राज्य थे ?
Answer :-        कोसल , वत्स , अवन्ति , मगध महाजनपदों में राजतंत्र था और अन्य में गणतंत्र था |

Question 16.    जनपदों की सबसे बड़ी संस्था का नाम बताइए ?
Answer :-        संस्थागार जनपदों की सबसे बड़ी संस्था थी |

Question 17.    चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु कौन थे ?
Answer :-        चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे |

Question 18.    चन्द्रगुप्त मोर्य ने किस यूनानी शासक को हराया था ?
Answer :-        चन्द्रगुप्त मोर्य ने 305 ई० पू ० में यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को हराया था |

Question 19.    शुंग वंश की स्थापना किसने और कब की थी ?
Answer :-        शुंग वंश की स्थापना 185 ई ० पू ० में पुष्यमित्र शुंग ने की थी |

Question 20.    राजतरंगिणी के अनुसार अशोक बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पहले किसका उपासक था ?
Answer :-        राजतरंगिणी के अनुसार अशोक बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पहले शिव का उपासक था |

Question 21.    गुप्तकालीन समाज परम्परागत रूप से कितने वर्णो में विभक्त था , नाम बताइए ?
Answer :-        गुप्तकालीन समाज परम्परागत रूप से चार वर्णो में विभक्त था |
        चार वर्ण - ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र में विभक्त थे |

Question 22.   पाल वंश का उदभव कब से और किस राजा से माना जाता है ?
Answer ;-        पाल वंश का उदभव लगभग 750 ई ० में गोपाल से माना जाता है |

Question 23.    पाल वंश का सबसे महान राजा कौन था ?
Answer :-        पाल वंश का सबसे महान राजा धर्मपाल था |

Question 24.    राष्ट्रकूट वंश की स्थापना कब और किसने की थी ?
Answer :-        राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 736 ई ० में दन्तिदुर्ग ने की थी |

Question 25.    गुर्जर - प्रतिहार वंश की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई थी ?
Answer :-        गुर्जर - प्रतिहार वंश की स्थापना 725 ई ० में नागभट्ट - I के द्वारा की गई थी |

Question 26.   शक संवत किसे कहते है ?
Answer :-        कनिष्क ने 78 ई ० में नया संवत चलाया , जिसे शक संवत के नाम से जाना जाता है |

Question 27.   चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य को किस -किस नाम से जाना जाता है ?
Answer :-        चाणक्य को कौटिल्य , विष्णुगुप्त , चाणक्य के नाम से जाना जाता है |

Question 28.   मेगस्थनीज की पुस्तक का नाम बताइए ?
Answer :-        मेगस्थनीज की पुस्तक का नाम इण्डिका है |

➡️लघुतरात्मक प्रश्न ( Short Questions )

Question 1.   महाजनपदों में उल्लेखित गणराज्यो के नाम बताइए |
Answer :-     महाजनपदों में दो प्रकार के राज्यों का उल्लेख मिलता है - राजतंत्र और गणतंत्र |
महाजनपदों में उल्लेखित गणराज्यो के नाम - कपिलवस्तु के शाक्य , सुंसुमार - गिरी के भाग , अल्लकप्प के बुली , केसपुत के कालाम , रामग्राम के कोलिय , कुशीनारा के मल्ल , पावा के मल्ल , पिप्पलीवन के मोरिय , वैशाली के लिच्छवी और मिथिला के विदेह |

Question 2.   अशोक के ' धम्म ' का सार लिखिए |
Answer :-      अशोक ने मनुष्य की नैतिक उन्नति के लिए जिन आदर्शो का प्रतिपादन किया है उन आदर्शो को धम्म कहा जाता है | अशोक के धम्म की परिभाषा दूसरे और सातवे स्तम्भलेख में दी गई है | अशोक के अनुसार विश्व कल्याण , दया , दान , सत्य , कर्मशुद्धि आदि धम्म है |
अशोक के धम्म की कुछ आवश्यक शर्ते - साधु स्वभाव होना , दया रखना , दान करना , व्यवहार में मृदुता लाना , पाप रहित होना , हमेशा सत्य बोलना , प्राणियों की रक्षा करना , कल्याणकारी कार्य करना , माता -पिता और अन्य बड़ो की आज्ञा का पालन करना , गुरु जनो का समान करना आदि है | अशोक के अनुसार इन सब बातो का पालन करना ही धम्म है |

Question 3.   समुन्द्रगुप्त के सांस्कृतिक योगदान को स्पष्ट कीजिए |
Answer :-      समुन्द्रगुप्त के सांस्कृतिक योगदान - समुन्द्रगुप्त और अन्य गुप्त सम्राट वैदिक धर्म को मानते थे | समुन्द्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ भी करवाया था | समुन्द्रगुप्त ने बौद्ध और जैन धर्म को आश्रय भी दिया था | समुन्द्रगुप्त की सफलताओ का विवरण प्रयाग - प्रशस्ति अभिलेख में मिलता है जिसकी रचना समुन्द्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण के द्वारा की गई थी | प्रयाग -प्रशस्ति अभिलेख और अशोक का अभिलेख एक ही स्तम्भ पर उत्कीर्णित है समुन्द्रगुप्त के सिक्को पर अश्वमेघ -पराक्रम लिखा मिलता है यह ललित कलाओ में निपुण था | यह विष्णु का भक्त था लेकिन फिर भी यह सभी धर्मो को समान महत्व और आदर देता था | एक सिक्के पर समुन्द्रगुप्त को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है जो उनके संगीत प्रेम को दर्शाता है |

Question 4.   राष्ट्रकूट वंश का संक्षिप्त परिचय दीजिए |
Answer :-      राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दन्तिदुर्ग ने 736 ई ० में की थी | उसने अपनी राजधानी नासिक को बनाया था | राष्ट्रकूट वंश में 14 शासक हुए | दन्तिदुर्ग चालुक्यों के अधीन सामन्त था उसने अंतिम चालुक्य शासक कीर्तिवर्मा द्वितीय को पराजित करके दक्षिण में चालुक्यो की सत्ता समाप्त कर दी | राष्ट्रकूट के महान शासक :- वंश के चौथे शासक ध्रुव ने गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज को पराजित किया और पाँचवे शासक गोविन्द तृतीय ने गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय और पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया | उसने राष्ट्रकूट साम्राज्य का विस्तार मालवा प्रदेश से कांची तक किया | छठा शासक अमोधवर्ष शांतिप्रिय था , जिसने लगभग 64 वर्षो तक राज्य किया | इसी ने मान्यखेड़ को राष्ट्रकूटों की राजधानी बनायी | कृष्ण द्वितीय और इंद्र तृतीय ने कन्नौज के शासक महिपाल को पराजित करके भागने को विवश कर दिया |

Question 5.   चोल प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |
Answer :-      चोलो का प्रशासन ग्राम पंचायत प्रणाली पर आधारित था | चोलो के प्रशासन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए चोल राज्य को छः प्रांतो में बाँटा गया जिनको ' मण्डलम ' कहा जाता था |
चोलो के प्रशासन में मण्डलम के उप -विभाग ' कोट्टम ' होते थे और कोट्टम के उप - विभाग ' नाडु ' , 'कुर्रम ' , और ग्राम होते थे | अभिलेखों में नाडु की सभा को नाटटर और नगर की श्रेणियों को 'नगरताल ' कहा गया है | गाँव के प्रतिनिधि प्रतिवर्ष निर्वाचित होते थे | यह पर लगान व्यक्स्था भी थी | भूमि की उपज का छठा भाग सरकार को लगान के रूप में दिया जाता था | चोल राज्य में प्रचलित सोने का सिक्का 'कासु' कहलाता था , ये सिक्का 16 औंस का होता था |

Question 6.    पल्ल्व वंश के बारे में आप क्या जानते है ?
Answer :-      पल्ल्व वंश के शासक अर्काट मद्रास , त्रिचनापल्ली तथा तंजौर के आधुनिक जिलों पर राज्य करते थे | पल्ल्वो में सिंहविष्णु छठी शताब्दी ई ० के उत्तरार्ध में सिंहासन पर बैठा | इसके बाद लगभग 2 शताब्दियों तक पल्ल्वो ने राज्य किया | प्रमुख पल्ल्व राजाओ के नाम :- महेंद्र वर्मा प्रथम , नरसिंह वर्मा प्रथम , महेंद्र वर्मा द्वितीय , परमेश्वर वर्मा , नरसिंह वर्मा द्वितीय , परमेश्वर वर्मा द्वितीय , नन्दी वर्मा , नन्दी वर्मा द्वितीय , अपराजित |

पल्ल्व वंश के राजाओ के कार्य :- महेंद्र वर्मा महान वास्तु - निर्माता था | इसने पत्थरो को तराशकर अनेक मंदिर बनवाये | महेंद्र वर्मा प्रथम ने 'मत विलास प्रहसन ' नाटक भी लिखा | उसने महेंद्र तालाब भी खुदवाया | प्रारम्भिक पल्ल्व राजाओ ने मामल्ल्पुरम या महाबलीपुरम नगर की स्थापना की और वह पर पाँच रथ मंदिरो का निर्माण कराया |

पल्ल्व वंश के राजाओ के युद्ध :- महेंद्र के पुत्र तथा उत्तराधिकारी नरसिंह वर्मा ने 642 ई ० में पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया और उसकी राजधानी वातापी पर अधिकर कर लिया , परन्तु चालुक्यों ने 655 ई ० में इस हार का बदला ले लिया |

Question 7.    कनिष्क का योगदान बताइए |
Answer :-
• कनिष्क भारत के प्रमुख कुषाण राजाओ में से एक माना जाता है |
▪️ कनिष्क के समय में चौथी बौद्ध संगीति हुई थी | इसने 78 ई ० में नया संवत चलाया , जिसे शक संवत के नाम से जाना जाता है |
• कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहा पर कनिष्कपुर नामक नगर बसाया |
• कनिष्क ने अपने समय में अनेक विजय प्राप्त की , उसने काशगर , यारकन्द , और खेतान पर विजय प्राप्त की|
•कनिष्क के राजदरबार में अनेक बौद्ध विचारक जैसे - पाशर्व , वसुमित्र , अश्वघोष , और गणितज्ञ जैसे नागार्जुन और चिकित्सक जैसे चरक विद्यमान थे |
•बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अभ्युदय और प्रचार कनिष्क के समय में हुआ |

➡️अन्यमहत्वपुर्ण प्रश्न ( लघुतरात्मक प्रश्न Short Questions )

Question 1.   मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में बताइए |
Answer :-      चन्द्रगुप्त मौर्य ने (322 - 298 ई ० पू ०) तक शासन किया | चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे और इन्ही की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य ने अंतिम नंद शासक घनानंद को पराजित करके मगध के राजसिंहासन पर बैठा था | 305 ई० पू ० में चन्द्रगुप्त मौर्य ने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया | बाद में दोनों के बीच में संधि हुई जिसमे चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी दिए और सेल्यूकस ने पूर्वी अफगानिस्तान , बलूचिस्तान और सिंध नदी का पश्चिम का क्षेत्र चन्द्रगुप्त को दे दिया और साथ ही उसने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से कर दिया और मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में उसके दरबार में भेज दिया |

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार :- चन्द्रगुप्त के विशाल साम्राज्य में काबुल , हेरात , कंधार , बलूचिस्तान , पंजाब , गंगा -यमुना का मैदान , बिहार , बंगाल , गुजरात , विंध्य और कश्मीर के भू - भाग शामिल थे |

दीक्षा और मृत्यु :- वृद्धावस्था में चन्द्रगुप्त ने भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली थी और 298 ई० पू ० में श्रवणबेलगोला में उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया |

Question 2.   अशोक और उसके कलिंग पर आक्रमण के बारे में बताइए |
Answer :-      अशोक ने (273 - 232 ई ० पू ०) तक शासन किया | दक्षिण भारत से प्राप्त मास्की और गुज्जरा अभिलेखों में उसका नाम अशोक मिलता है | अभिलेखों में अशोक को देवनांप्रिय , देवनांप्रियदर्शी जैसी उपाधियों से जाना जाता है | अशोक का विवाह विदिशा की राजकुमारी से हुआ तथा उससे पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ | कलिंग पर आक्रमण :- राज्याभिषेक के 8 वे वर्ष ( 261 ई ० पू ० ) में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया, जिसमे 1 लाख लोग मारे गए | इतना व्यापक नरसंहार हुआ कि इस युद्ध ने अशोक को विचलित कर दिया | और अशोक ने शास्त्रत्याग की घोषणा कर दी | अशोक ने भेरीघोष के स्थान पर धम्मघोष अपना लिया |

Question 3.    चोल कला और चोल समाज के बारे में बताइए |
Answer :-      चोल कला :- चोलो ने पल्ल्वो की स्थापत्य कला को आगे बढ़ाया | चोलो की द्रविड़ मंदिर शैली की कुछ विशेषताएँ है :- वर्गाकार विमान , मण्डप , गोपुरम , कलापूर्ण स्तम्भों से युक्त वृहदसदन , सजावट के लिए पारम्परिक सिंह , ब्रैकेट तथा सयुंक्त स्तम्भों आदि का होना | राजराज प्रथम का तंजौर का शिव मंदिर द्रविड़ शैली का एक शानदार नमूना है | दक्षिण भारत में नहरों की प्रणाली चोलो की देन है | चोल मंदिरो में चिदंबरम और तंजौर के मंदिर सर्वोत्कृष्ट है | चोल युग की नटराज शिव की कांसे की मूर्तिया भी सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है | इस युग में मंदिरो की गोपुरम शैली का विकास हुआ |

Question 4.    हूण कौन थे ? इन्होने भारत पर कब आक्रमण किया | इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?
Answer :-      हूण :- हूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाती थी , जिसने भारतवर्ष में शको की तरह ही उतर - पश्चिम की ओर से प्रवेश किया | हूण 'दैत्य ' भी पुकारे जाते थे |

आक्रमण :- सर्वप्रथम 458 ई ० के लगभग स्कंदगुप्त के समय हूणों का आक्रमण हुआ , जिसमे उनकी पराजय हुई |
भारत पर प्रभाव :- हूणों के आक्रमण के कारण गुप्त सम्राज्य नष्ट हो गया और भारत की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई | देश पुनः छोटे -छोटे टुकड़ो में विभाजित हो गया |

Question 5.    कुषाण वंश के बारे में बताइए ?
Answer :-      कुषाणों को यूचि या तौचेरियन भी कहा जाता है | यूचि कबीला पांच भागो में विभाजित हो गया था | और इन्ही कबीलो में से एक कबीले ने भारत के कुछ भागो पर शासन किया था |

कुषाण वंश के महान संस्थापक और राजा -
➝ कुजुल कडफिसस प्रथम (15 ई ० - 65 ई ० ) :-> यह अपनी जाति के गौरव का संस्थापक था | इसका राज्य दक्षिणी अफगानिस्तान , काबुल , कन्धार और पार्थिया के एक भाग में फैला हुआ था |

➝ विम कडफिस द्वितीय ( 65 - 75 ई ० ) :- इसका राज्य भारत के विशाल क्षेत्र पर फैला हुआ था | यह शैव मत का अनुयायी था | भारत में पहली बार अपने नाम के सोने के सिक्के इसी ने चलाये |

➡️निबन्धात्मक प्रश्न ( Long Questions )

Question 1.    महाजनपदों का उल्लेख करते हुए राजस्थान का प्रमुख जनपदों का परिचय दीजिए |
Answer :-      महाजनपदों में दो प्रकार के राज्यों का उल्लेख मिलता है - राजतंत्र और गणतंत्र |

महाजनपदों में उल्लेखित गणराज्यो के नाम - कपिलवस्तु के शाक्य , सुंसुमार - गिरी के भाग , अल्लकप्प के बुली , केसपुत के कालाम , रामग्राम के कोलिय , कुशीनारा के मल्ल , पावा के मल्ल , पिप्पलीवन के मोरिय , वैशाली के लिच्छवी और मिथिला के विदेह |

महाजनपदों में उल्लेखित राजतंत्रो के नाम - कोसल , वत्स , अवन्ति , मगध महाजनपदों में राजतंत्र था |

➝राजस्थान के प्रमुख जनपद -
(1) जांगल :-      राजस्थान के जनपदों में जांगल जनपद प्रमुख है | वर्तमान के बीकानेर और जोधपुर के जिले महाभारत के काल में जांगलदेश कहलाते थे और इस जनपद की राजधानी अहिछत्रपुर थी , जिसे वर्तमान में नागौर कहते है | इस जांगल देश का स्वामी बीकानेर का राजा था और इसी कारण वह अपने आप को जांगलधर बादशाह कहते थे |

(2) मत्स्य :-     वर्तमान जयपुर के आस - पास का क्षेत्र महाभारत के काल में मत्स्य महाजनपद कहलाता था | इस महाजनपद की राजधानी विराटनगर थी जिसे वर्तमान में बैराठ के नाम से जाना जाता है | मत्स्य महाजनपद का विस्तार चम्बल के पास की पहाड़ियों से लेकर सरस्वती नदी के जांगल क्षेत्र तक था | वर्तमान के अलवर और भरतपुर के कुछ भू - भाग भी इसी के क्षेत्र के अंतर्गत आते थे |

(3) शूरसेन :-      वर्तमान के ब्रज क्षेत्र में यह महाजनपद स्थित था | इसकी राजधानी मथुरा थी | महाभारत के अनुसार यहाँ पर यादव वंश का शासन था | वर्तमान समय के भरतपुर , धौलपुर , करौली के अधिकांश भाग महाभारत काल के शूरसेन जनपद के अंतर्गत आते थे | वासुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण का संबंध भी इसी जनपद से था |

(4) शिवि :-      वर्तमान समय के पाकिस्तान का शोरकोट नामक स्थान महाभारतकाल में शिवि जनपद के नाम से जाना जाता था | शिवि जनपद की राजधानी शिवपुर थी जो वर्तमान समय मे चितौडगढ़ के पास स्थित नगरी है | इसे राजा सुशिन ने दश राजाओ के युद्ध में पराजित किया था | वर्तमान में शिवि जाति राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में निवास करने लगी |

Question 2.   मौर्यकालीन प्रशासन एवं समाज का वर्णन कीजिए ?
Answer :-     मौर्यकालीन प्रशासन :- भारत में पहली बार केंद्रीकृत शासन व्यवस्था की स्थापना मौर्यकाल में हुई थी | सत्ता का केन्द्रीकरण राजा में होता था लेकिन फिर भी राजा निरंकुश नहीं होता था | राजा मुख्यमंत्री और पुरोहित की नियुक्ति करता था | मौर्यकालीन प्रशासन में दो प्रशासन आते है - 1) केंद्रीय प्रशासन 2) प्रांतीय प्रशासन

1 ) केंद्रीय प्रशासन :-    अर्थशास्त्र में 18 विभागों का उल्लेख किया गया है , जिन्हे 'तीर्थ ' कहा गया है | तीर्थ के अध्यक्ष को ' महामात्र ' कहा गया है | इनमे महत्वपूर्ण तीर्थ निम्न है - मंत्री , पुरोहित , सेनापति , और युवराज | केंद्रीय प्रशासन में आने वाले सदस्य एवं उनके कार्य :-

➝ समाहर्ता :-    इनका कार्य राजस्व एकत्र करना , आय - व्यय का ब्यौरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना था|
➝ सन्निधाता :-   इन्हे कोषाध्यक्ष भी खा जाता है | इनका कार्य साम्राज्य के विभिन्न भागो में कोषगृह और अन्नागार बनवाना था | अर्थशास्त्र में 26 विभागाध्यक्षों का उल्लेख किया गया है जैसे - सीताध्यक्ष ( कृषि ), पण्याध्यक्ष (व्यापारी) , सूत्राध्यक्ष ( कताई ,बुनाई ), लुनाध्यक्ष (बूचड़खाना ) , विविताध्यक्ष (चरागाह ) , लक्षणाध्यक्ष (मुद्रा जारी करना ) आदि |

2) प्रांतीय प्रशासन :- मौर्यकाल में अशोक के समय में मगध साम्राज्य के पांच प्रांतो का उल्लेख मिलता है -
        (i) उत्तरापथ (तक्षशिला )
        (ii) दक्षिणापथ ( सुवर्णगिरि )
        (iii) मध्य देश (पाटलिपुत्र )
        (iv) अवन्तिराष्ट्र (उज्जयिनी )
        (v) कलिंग (तोसली)
प्रांतीय प्रशासन के अध्यक्ष और उनके कार्य -

    ⇨ कुमार या आर्यपुत्र :-   प्रांतो का शासन राजवंशीय 'कुमार ' या 'आर्यपुत्र ' नामक पदाधिकारियों के द्वारा किया जाता है |
    ⇨ विषयपति :-   प्रांत विषयो में विभक्त थे ,जो विषयपतियो के अधीन होते थे |

    ⇨ स्थानिक :-   जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक होता है ,जो समाहर्ता अधीन होता है |

    ⇨ गोप :-    प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव होती है , जिसका मुखिया 'गोप ' होता था ,जो दस गाँवो का शासन संभालता था |

    ⇨ प्रदेष्ट्रि :-   समाहर्ता के अधीन प्रदेष्ट्रि नामक अधिकारी होता था ,जो स्थानीय , गोप और ग्राम अधिकारियो के कार्यो की जाँच करता था |

★ नगर शासन :-   मेगथनीज के अनुसार नगर का शासन प्रबंध 30 सदस्यों का एक मंडल करता है, जो 6 समितियों में विभक्त था |

★ सैन्य व्यवस्था :-   सेना के संगठन हेतु पृथक सैन्य विभाग था , जो 6 समितियों में विभक्त था | प्रत्येक समिति में पांच सदस्य होते थे | ये समितियाँ सेना के पांच विभागों की देखभाल करती थी | सेना के पांच विभाग :-   पैदल , अश्व , हाथी , रथ और नौसेना थे |

    ⇨ सैनिक प्रबंध की देखरेख करने वाला अधिकारी ' अंतपाल ' कहलाता था |

    ⇨ मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख पैदल , 50 हजार अश्वारोही , 9 हजार हाथी और 800 रथो से सुसज्जित सेना थी |

     ★ न्याय व्यवस्था :-   न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी स्वयं सम्राट होता है | नीचले स्तर पर ग्राम न्यायालय होते थे , जहाँ पर ग्रामणी और ग्रामवृद्ध अपना निर्णय देते थे | इसके ऊपर भी अनेक न्यायलय होते थे जैसे - संग्रहण ,स्थानीय , जनपद , द्रोणमुख स्तर के न्यायालय होते थे | सबसे ऊपर पाटलिपुत्र का केंद्रीय न्यायालय था न्यायालय दो प्रकार के होते है :- 1. धर्मस्थीय 2. कंटकशोधन

    (1) धर्मस्थीय :-   ये दीवानी अदालत होती थी | इसमें चोरी , डाके और लूट के मामले , जिन्हे 'साहस ' कहा जाता है और कुवचन , मान - हानि , मारपीट के मामले , जिन्हे 'वाक् पारस्य ' या ' दण्ड पारस्य ' कहा है ,भी धर्मस्थीय अदालत में रखे जाते है |

    (2) कंटकशोधन :-   ये फौजदारी अदालत थी | तीन प्रदष्टि तथा तीन अमात्य मिलकर राज्य और व्यक्ति मध्य विवाद का निर्णय करते है |

➡️मौर्यकालीन समाज :-   मौर्यकालीन समाज की जानकारी कौटिल्य के अर्थशास्त्र , मेगस्थनीज की इंडिका और अशोक के अभिलेखों से मिलती है | कौटिल्य ने वर्णाश्रम व्यवस्था को सामाजिक संगठन का आधार माना है | मेगस्थनीज की इंडिका में भारतीय समाज का वर्गीकरण सात जातियों में किया है | मौर्यकालीन समाज में स्त्रियॉं की स्थिति ज्यादा उन्नत नहीं थी ,लेकिन स्मृतिकाल की स्थिति की अपेक्षा अच्छी स्थिति में थी |स्त्रियॉं को पुनर्विवाह और नियोग की अनुमति भी थी |

Question 3.   गुप्तवंश के प्रमुख शासको का वर्णन करते हुए इस काल की सांस्कृतिक उपलब्धियों पर एक लेख लिखिए |
Answer :-     गुप्तवंश :- इस वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था | गुप्तवंश को 275 ई ० में श्रीगुप्त ने प्रारम्भ किया था |श्रीगुप्त के बाद में इस वंश का शासक घटोत्कच बना था | इसकी उपाधि ' महाराज ' थी |

गुप्तवंश के प्रमुख शासक और उनका वर्णन :-


                           Chief ruler of Gupta dynasty

    (1) चन्द्रगुप्त प्रथम :-   इसने (320 - 335 ई ० ) तक शासन किया था | घटोत्कच के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम शासक बना | इसने ' महाराजाधिराज 'की पदवी धारण की | इसने 319 ई ० में एक संवत चलाया , जो गुप्त संवत के नाम से प्रसिद्ध है |

    (2) समुद्रगुप्त :-   इसने (335 -380 ई ० ) तक शासन किया था | चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद समुद्रगुप्त गुप्त वंश का शासक बना | समुद्रगुप्त की विजयो का वर्णन प्रयाग - प्र्शस्ति में मिलता है जिसकी रचना हरिषेण नामक कवि ने की थी समुद्रगुप्त के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी | समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किये थे | इसके सिक्कों पर ' अश्वमेध पराक्रम ' लिखा मिलता है |

    (3) चन्द्रगुप्त द्वितीय :-   इसने ( 380 - 412 ई ० ) तक शासन किया था | समुद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय शासक बना | शक -विजय के पश्चात चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ' विक्रमादित्य ' की उपाधि धारण की |

    (4) कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य :-   इसने ( 414 - 455 ई ० ) तक शासन किया था | चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद उसका पुत्र कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य शासक बना | नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापक कुमारगुप्त को माना जाता है | उसका राज्य विस्तार सौराष्ट्र से बंगाल तक फैला था |

    (5) स्कन्दगुप्त :-   इसने (455 -467 ई ० ) तक शासन किया था | स्कन्दगुप्त ज्येष्ठ पुत्र न होते हुए भी राज्य का उत्तराधिकारी बना | इसने चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जीर्णोदार करवाया | स्कन्दगुप्त ने अंततः हूणों को पराजित कर दिया था |

➡️ गुप्त वंश की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ :-   भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गप्त वंश का बहुत अधिक महत्व है | गुप्त वंश के सम्राट वैदिक धर्म को मानने वाले थे | गुप्त वंश के शासको ने अनेक सांस्कृतिक कार्य किये | समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त प्रथम ने अश्वमेध यज्ञ किया था उन्होंने बौद्ध धर्म और जैन धर्म को भी प्रश्नय दिया | गुप्तवंश के शासको के समय में अनेक यात्री भारत आये थे | चन्द्रगुप्त प्रथम के समय में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था | इन यात्रियों के विवरण से पता चलता है कि गुप्त साम्राज्य सुशासित था , अपराध बहुत कम होते थे और कर भार भी बहुत कम था | राजकाज की भाषा संस्कृत थी | गुप्तकाल में अनेक कवि हुए थे जिन्होंने अनेक नाटक और महाकाव्य लिखे |
➝कवि और उनकी रचनाएँ और नाटक :-

• कालिदास :- नाटक - ' अभिज्ञानशाकुन्तलम ' और महाकाव्य - रघुवंशम् की रचना की थी |
• शूद्रक :- नाटक - ' मृच्छकटिकम ' की रचना की थी |
• विशाखदत्त :- नाटक - ' मुद्राराक्षस ' की रचना की थी |

➝ रामायण , महाभारत और मनुसंहिता अपने वर्तमान रूप में गुप्त काल में ही सामने आयी |
➝ गुप्तकाल में आर्यभट्ट , वराहमिहिर , ब्रह्मगुप्त ने गणित और ज्योतिर्विज्ञान के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है |
➝ गुप्तकाल में ही दशमलव प्रणाली का अविष्कार हुआ था |

Question 4.   दक्षिण के चोल एवं चालुक्य राज्यों का सविस्तार वर्णन करें |
Answer :-     दक्षिण के चोल राज्य का सविस्तार वर्णन :- चोल वंश का संस्थापक विजयालय था | विजयालय के पुत्र आदित्य ने पलव्व नरेश अपराजित को हराया था और आदित्य के पुत्र परांतक ने पल्ल्व वंश को समाप्त कर दिया था | चोल राजा राजराज प्रथम ने अपना साम्राज्य विस्तार किया ,उसने पुरे मद्रास , मैसूर , कूर्ग और सिंहलद्वीप ( श्रीलंका ) को अपने अधीन करके दक्षिणी भारत का एकछत्र सम्राट बन गया था | इसकी राजधानी तंजौर थी | राजराज प्रथम ने राजधानी तंजोर में भगवान शिव का राजराजेश्वर मंदिर बनवाया | राजराज प्रथम के पुत्र राजेंद्र प्रथम के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी , जिसकी सहायता से उसने पेगू , मर्तबान और अण्डमान - निकोबार द्वीपों को जीता था | उसने बंगाल और बिहार के शासक महिपाल के साथ युद्ध भी किया | वह कलिंग को पार करके दक्षिणी कोसल , बंगाल , मगध आदि को पार करते हुए गंगा तक पहुँच गया | अपनी इस विजय पर उसने गंगईकोंड की उपाधि धारण की थी | आगे चलकर चोल वंश में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष होने लगा और अंत में सिंहासन राजेन्द्र कुलोत्तुंग प्रथम को प्राप्त हुआ | राजेन्द्र कुलोत्तुंग की माँ चोल राजकुमारी और पिता चालुक्य राज्य का स्वामी था | राजेन्द्र कुलोत्तुंग का संबंध चोल और चालुक्य दोनों से होने कारण कुलोत्तुंग ने चालुक्य - चोलो के एक नए वंश की स्थापना की | राजेन्द्र कुलोत्तुंग ने चालीस वर्षो तक शासन किया था |

दक्षिण के चालुक्य वंश का विस्तार :-     चालुक्य राजाओ में सबसे पराक्रमी राजा पुलकेशिन द्वितीय था | उसका राज्य उतर में नर्मदा से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी तक फैला था | 642 ई ० में पुलकेशिन पल्ल्व नरेश नरसिंहवर्मा से पराजित हो गया था लेकिन पुलकेशिन के पुत्र विक्रमादित्य प्रथम ने चालुक्य शक्ति को वापस प्रतिष्ठित किया | चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वितीय ने 973 ई ० में राष्ट्रकूट नरेश को परास्त करके नए चालुक्य वंश की स्थापना की और कल्याणी को अपनी राजधानी बनायी | यह नया चालुक्य वंश 973 ई ० से 1200 ई ० तक अस्तित्व में रहा | सत्याश्रम नामक चालुक्य राजा को चोल नरेश राजराज ने पराजित किया था | चालुक्य नरेशों ने हिन्दू होने के बावजूद बौद्ध और जैन धर्म को प्रश्नय दिया और अनेक मंदिर बनवाये |